HINDI VERSION OF THE TELE PENSIONER EDITORIAL.

संसद चुनाव और हमारे कार्य

चुनाव आयोग ने 18वीं लोकसभा के लिए आम चुनाव की घोषणा कर दी है, और ये 19 अप्रैल से 1 जून, 2024 तक विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सात चरणों में आयोजित किये जाने है।

जहां तक ​​हमारे देश का प्रश्न है, यह बहुत ही महत्वपूर्ण चुनाव है। बेशक, हम किसी दलीय राजनीति में नहीं हैं, लेकिन हम अपने पेंशनभोगियों के हितों का ख्याल रखने के लिए बाध्य हैं।

पेंशनभोगियों के मुद्दों पर मोदी सरकार की क्या नीति रही है?

  1. पेंशन संशोधन, बीएसएनएल/एमटीएनएल पेंशनर्स का वैध अधिकार, जो कि दिनांक 01-01-2017 से देय है, पिछले 87 महीनों से विश्वासघातपूर्वक नकारा जा रहा है।
  2. कोविड महामारी के दौरान जब्त की गई महंगाई भत्ते / महंगाई राहत की तीन किश्तें वापस नहीं की गईं बल्कि न्यायालय के अनुकूल आदेशों के बावजूद खारिज कर दी गईं।
  3. मोदी शासन के दौरान “एनजेसीएम” और “स्कोवा” का मजाक उड़ाया जा रहा है ।चिरकाल से लंबित किसी भी मांग पर कोई समझौता नहीं किया गया है, यथा: 12 वर्ष पश्चात कम्यूटेशन की बहाली, एक वर्ष की सेवा पूरी कर वेतन वृद्धि प्राप्त करने से पूर्व सेवानिवृत्त होने वालों को पेंशन के लिए एक काल्पनिक वेतन वृद्धि, ₹ 3,000 का निश्चित चिकित्सा भत्ता, संसदीय स्थायी समिति की एकमात्र अस्वीकृत मांग, 7वें वेतन आयोग द्वारा अनुशंसित विकल्प 1 का कार्यान्वयन, कोविड महामारी के दौरान वापस ली गई रेलवे रियायत की बहाली और 8वें वेतन आयोग की नियुक्ति पर किसी भी प्रकार का निर्णय नहीं।
  4. पुरानी पेंशन योजना की बहाली पर कोई निर्णय नहीं हुआ क्योंकि “एनपीएस” पहले ही से “कोई पेंशन नहीं” योजना साबित हो चुकी है। मोदी सरकार द्वारा नियुक्त सचिव स्तरीय समिति से कुछ भी अपेक्षित नहीं है क्योंकि हमने कुछ राज्य सरकारों, जिन्होंने ओपीएस को बहाल किया, के प्रति मोदी सरकार का शत्रुतापूर्ण रुख भी देखा है।
  5. संसदीय समिति की निम्नलिखित सभी सिफारिशों को मोदी सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया है:

(क) 65 वर्ष की आयु में 5%, 70 वर्ष की आयु में 10% और 75 वर्ष की आयु में 15% अतिरिक्त पेंशन।
(ख) देश के समस्त जिलों में सीजीएचएस वेलनेस सेंटर की स्थापना।
(ग) सीजीएचएस वेलनेस सेंटर्स में पदों के औचित्य के अनुसार डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ और नर्स की तैनाती।
(घ) वेलनेस सेंटर्स में पर्याप्त दवाइयों की आपूर्ति सुनिश्चित करना।
(ङ) गैर-सूचीबद्ध सीजीएचएस अस्पतालों में इलाज के लिए पूरी राशि की प्रतिपूर्ति।

मोदी की गारंटी और वास्तविकता

इस चुनाव के दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बहुत सारी गारंटीज दी जा रही है। आइए देखें कि अतीत में दी गई निम्नलिखित “गारंटियों” का क्या हुआ?

गारंटी 1: विदेशी बैंकों में जमा किए गए काले धन की बड़ी मात्रा को वापस लाया जाएगा और भारत के प्रत्येक नागरिक को 15 लाख रुपये दिए जाएंगे।

और हुआ क्या?: कुछ नहीं बल्कि काले धन की ताकतें पहले से कहीं ज्यादा फल-फूल रही हैं।

गारंटी 2: देश में बढ़ती बेरोजगारी को दूर करने के लिए प्रतिवर्ष 2 करोड़ नौकरियां पैदा की जाएंगी।

और हुआ क्या?: रेलवे सहित केंद्र सरकार के कई क्षेत्रों में 10 लाख से ज्यादा रिक्तियां हैं, जिन्हें भरा नहीं जा रहा है। एक निश्चित अवधि के बाद रिक्तियों को रद्द कर दिया जा रहा है। सिर्फ अनुबंध आधारित और आकस्मिक नौकरियां दी जा रही हैं। अग्निपथ के नाम पर सशस्त्र बलों में भी नियुक्तियां अनुबंध पर की जा रही हैं। नतीजतन, देश में बेरोजगारी इतनी बढ़ गई है कि 83% बेरोजगार शिक्षित युवा हैं।

गारंटी 3: पेट्रोल की कीमत 50 रुपये प्रति लीटर हो जाएगी और एलपीजी की कीमत भी कम होगी।

और हुआ क्या?: 2014 में पेट्रोल की कीमत 70 रुपये थी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक बैरल कच्चे तेल की कीमत 136 डॉलर थी। इसी तरह से एलपीजी की कीमत 410 रुपये थी।

अब कच्चे तेल की कीमत गिरकर 86 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई है। लेकिन देखिए पेट्रोल की कीमत ₹110 प्रति लीटर हैं। क्या कमाल है? जब कच्चे तेल की कीमत में करीब 40% की कमी आती है, तो पेट्रोल की कीमत में 57% की बढ़ोतरी हो जाती है। यह कैसे हुआ? पेट्रोल और डीजल पर लगाया जा रहा कुल कर 66% है, जो दुनिया में सबसे ज़्यादा है। इसमें से ₹33 अतिरिक्त उत्पाद शुल्क और विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क का योग है, जिसे राज्य सरकारों के साथ साझा ही नहीं किया जा सकता।

मोदी सरकार ने लोगों की इतनी क्रूर लूट क्यों की?

2014 में कॉर्पोरेट टैक्स 30% था। वर्ष 2019 से मोदी राज में कॉर्पोरेट टैक्स की दर सिर्फ़ 15% है। नतीजतन, सरकार की राजस्व आय में भारी गिरावट आई और इस नुकसान की भरपाई के लिए मोदी सरकार ने आम लोगों को लूटना शुरू कर दिया।

जैसा कि आप जानते हैं, एलपीजी की कीमत भी ₹1,100 तक बढ़ गई है। इससे भी बुरी बात यह है कि बिना किसी सूचना के सब्सिडी भी वापस ले ली गई।

गारंटी 4:महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा।

और हुआ क्या?: कई राज्यों में नाबालिग लड़कियों, खास तौर पर दलितों के साथ बलात्कार और हत्या की घटनाएं आम हो गई हैं तथा पीड़ितों और गवाहों पर हमला करके उन्हें मार दिया जाता है। निहित स्वार्थों द्वारा जानबूझकर किए गए मणिपुर दंगे मई, 2023 से लगातार जारी हैं। कई महिलाओं को नंगा करके घुमाया जाता है, बलात्कार किया जाता है और उनकी हत्या कर दी जाती है।

गारंटी 5: “मेरी सरकार भ्रष्टाचार मुक्त होगी।”

और हुआ क्या?: सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनावी बॉन्ड को संविधान विरोधी घोषित करते हुए रद्द करने और उसके परिणामस्वरूप एसबीआई के खुलासे से मोदी और भाजपा का असली चेहरा उजागर हो गया है। चुनावी बॉन्ड और पीएम केयर्स फंड सबसे बड़े घोटाले हैं, जिनके ज़रिए भाजपा ने अवैध रूप से हज़ारों करोड़ रुपए कमाए हैं।

नोटबंदी, हिमालयी भूल

दिनांक 08-11-2016 को नरेंद्र मोदी ने नकली, काले धन और आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगाने का दावा करते हुए ₹1000 और ₹500 की मुद्राएँ बंद कर दीं।

इसके क्या परिणाम हुए? लोगों को एक वर्ष तक परेशानी और कष्ट सहना पड़ा। हज़ारों छोटे उद्योग बंद हो गए और लाखों मज़दूर बेरोज़गार हो गए। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ गई।

क्या लक्ष्य हासिल करने में सफलता मिली?

नहीं, एक बड़ा शून्य। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, 99% मुद्राएँ वापस आ गईं।

सार्वजनिक उपक्रमों पर हमले

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, सार्वजनिक उपक्रम मरने के लिए पैदा होते हैं। लगभग सभी सार्वजनिक उपक्रम, जिनमें नव रत्न का दर्जा प्राप्त लाभ कमाने वाले उपक्रम भी सम्मिलित हैं, को बहुत कम कीमत पर कॉरपोरेट्स को सौंप दिया जा रहा है। राष्ट्रीय मुद्रीकरण प्रक्रिया के नाम पर, रणनीतिक क्षेत्रों सहित राष्ट्रीय संपत्ति भी कॉरपोरेट्स को दी जा रही है।

बीएसएनएल को विकसित नहीं होने दिया जा रहा है

बार-बार “पुनरुद्धार पैकेज” की घोषणा के बावजूद 78,569 कर्मचारियों की छंटनी के अलावा कुछ नहीं हुआ। विदेशी कंपनियों से उपकरण खरीदकर बीएसएनएल को अपनी 4जी सेवाएं शुरू करने की अनुमति नहीं है, जबकि निजी दूरसंचार कंपनियों पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है। इसलिए लाखों ग्राहक बीएसएनएल को छोड़ रहे हैं और इसके अस्तित्व को गंभीर खतरा पैदा कर रहे हैं। मोदी सरकार का असली इरादा बीएसएनएल को खत्म करना और इसकी लाखों करोड़ रुपये की संपत्ति अंबानी या अडानी को सौंपना है और उन्हें दूरसंचार सेवाओं के लिए अत्यधिक दरों पर लोगों को लूटने की अनुमति देना है। बीएसएनएल कर्मचारियों की कोई गलती नहीं होने के बावजूद उन्हें दिनांक 01-01-2017 से देय उचित वेतन संशोधन से वंचित किया जा रहा है।

बैंक पेंशनर्स
निधि की उपलब्धता के बावजूद गत 30 वर्षों से पेंशन में कोई संशोधन नहीं

बैंक पेंशनर्स के लिए 30 वर्ष पूर्व जब से पेंशन प्रारंभ हुई है तब से लेकर आज तक सेवारत कर्मचारियों के वेतन का द्विपक्षीय समझौते के तहत पांच बार वेतन पुनर्निर्धारण हो चुका है परंतु लगातार मांग के बावजूद आज तक पेंशन में संशोधन नहीं हो पा रहा है।

इसमें भी आश्चर्य की बात यह है कि यह तब हैं जबकि बैंक पेंशनर्स को पेंशन खजाने से नहीं मिलकर उनके स्वयं के फंड से मिल रही है और वर्तमान में इस फंड में लगभग एक लाख करोड रुपए का इतिशेष है तथा इस जमा इतिशेष पर ब्याज के साथ ही साथ कर्मचारी एवम् बैंक का हिस्सा जो इस पेंशन फंड में प्रतिवर्ष जमा हो रहा है उसके मुकाबले पेंशन पर व्यय आय से कम हैं। इससे इस फंड मे हर वर्ष वृद्धि हो रही हैं

इन समस्त सकारात्मक तथ्यों के बावजूद भी आखिर क्यों सरकार इस मुद्दे पर सेवानिवृत्त कर्मचारी ऐसोसियेसनो से वार्ता तक करने को तैयार नहीं है, यह विचारणीय प्रश्न है। कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार इस फंड को भी उसके हकदारों का मुंह मार के अपने औद्योगिक मित्रों के सुपुर्द करने की कोई योजना पाले हुए हैं?

सीजीएचएस और आभा
स्वास्थ्य अभिलेख लाभार्थी का व्यक्तिगत अधिकार परंतु सरकार का मंतव्य कहीं इसे अपने औद्योगिक मित्रों को व्यावसायिक उद्देश्यों से उपलब्ध कराने का तो नहीं

सीजीएचएस लाभार्थी संख्या को “आभा” से जोड़ने के प्रकरण में जनवरी 2023 में सीजीएचएस द्वारा जारी आदेश में यह स्पष्ट कहा गया था कि सीजीएचएस लाभार्थी यदि अपनी लाभार्थी संख्या को “आभा” से जोड़ने के लिए इच्छुक हो तो इस प्रक्रिया में भाग ले सकता है और स्वेच्छा से अपनी “आभा” आईडी बनाने का विकल्प चुन सकता है।

इसके पश्चात उक्त आदेश की भावना के विपरीत जब सीजीएचएस द्वारा लाभार्थियों पर व्यवहारिक रूप से यह दबाव बनाना प्रारंभ किया गया कि वे अपनी लाभार्थी संख्या को आभा से जोड़े तो ज्ञात हुआ कि सरकार की इस योजना का अंतिम लक्ष्य सीजीएचएस सेवाओं को समाप्त करते हुए इसके लाभार्थियों को आयुष्मान भारत योजना, जो कि इस सरकार की अतिमहत्वाकांक्षी योजनाओ में से एक है, के तहत ले आना हैं।इस पर विभिन्न संगठनों द्वारा जब इस दबाव का भारी विरोध किया गया तब सरकार द्वारा यह स्पष्ट किया गया था कि यह योजना स्वेच्छिक है, अनिवार्य नहीं।

परंतु सीजीएचएस संबंधी कई और विभिन्न तथा मुंहबाये खड़ी समस्याओं पर ध्यान देने की बजाय, इस मामले में कुछ अंतराल की चुप्पी के पश्चात सरकार द्वारा अब एकाएक रूप से हाल में दिनांक 28 मार्च 2024 को जारी आदेश के तहत सीजीएचएस लाभार्थी संख्या को “आभा से जोड़ना बलपूर्वक अनिवार्य करते हुए 30 अप्रैल 2024 तक इस कार्य को पूरा करने की सीमा तक तय कर दी गई है।

इस आदेश का भी वर्तमान में विभिन्न संगठनों के स्तर पर एक बार पुनः भारी विरोध किया जा रहा है परंतु सरकार, जिसने इस सेवा के बदले लाभार्थियों से करोड़ो रुपए वसूल रखे हैं, यह आश्वासन तक देने को तैयार नहीं है कि सीजीएचएस सेवा को आयुष्मान भारत के अधीन नहीं लाया जाएगा और सीजीएचएस लाभार्थियों को आयुष्मान भारत योजना के लाभार्थियों के समकक्ष नहीं रखा जायेगा।

उम्र के इस पड़ाव में पेंशनर्स, जिन्हें गुणवतापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की सबसे अधिक दरकार रहती है, के साथ इस प्रकार के दुर्व्यवहार के साथ सरकार ने मानवीय संवेदनाओं तक को तिलांजलि दे दी है।

बताने को तो यह कहा जा रहा है कि आपके स्वास्थ्य अभिलेख तक आपकी ही पहुंच रहेगी परंतु पिछले महीनो में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के सर्वर से रोगियों का डेटा किस प्रकार से गायब होकर कहां गया होगा, इसे समझने भर की आवश्यकता मात्र है।

असमानता खतरनाक रूप से बढ़ गई है

मोदी सरकार के 10 साल के शासन के बाद, इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में अरबपतियों की संख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है, जिसका श्रेय कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों को जाता है। साथ ही, अमीर और गरीब के बीच असमानता भी बहुत बढ़ गई है। गरीबी सूचकांक में भारत 123 देशों में से 111वें स्थान पर है, जबकि 1% अति-धनवानों ने राष्ट्रीय संपत्ति का 40% हिस्सा हथिया लिया है।

इन सब बातों को छोड़ भी दें, तो भी सत्ताधारी पार्टी द्वारा अपनाई जा रही नफरत और दीनता की राजनीति ही हमारी स्वतंत्रता, शांति, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और हमारे महान संविधान के लिए असली खतरा है।

इसलिए हमें गंभीरता से सोचना चाहिए और आगामी चुनावों में सोच-समझकर मतदान करना चाहिए।